भाद्रपद में शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को हरितालिका तीज आती है। स्त्रियां और कन्या जो इस व्रत को करना चाहती हैं, वह गौरी शंकर की पूजा अपने मनोकामना सिद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं। इस व्रत को सधवा और विधवा दोनों कर सकती हैं। इस व्रत में बिना खाए पिए 24 घंटे का अखंड निर्जला व्रत करना होता है। अगर कोई स्त्री निर्जल व्रत नहीं कर सकती तो केवल दूध फल लेना चाहिए।
अगर किसी स्त्री को कोई गंभीर बीमारी हो गई है, और यह व्रत नहीं कर सकती तो उसकी जगह पर उस स्त्री का पति भी कर सकता है। या कोई दूसरी स्त्री भी कर सकती है।
हरि तालिका तीज क्या है?
हरि तालिका शब्द दो शब्द को मिलाकर बनाया गया है। जिसमें हरि का अर्थ हरण तथा तालिका का अर्थ सखी से है। इसका मतलब है मां पार्वती को उनकी सखी हरण करके जंगल में ले गई थी। इसलिए इस व्रत को हर तालिका व्रत कहते हैं।
हरि तालिका तीज में प्रथम गणेश पूजन तथा बाद में भगवान भोलेनाथ और और मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत को सुहागन महिलाएं और कुंवारी कन्या करती है। यह व्रत सुहागन महिला अपने सौभाग्य के लिए तथा सदा सुहागन रहने के लिए सुहागन करती है। और कुंवारी कन्या अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और अपनी पसंदीदा वर के लिए यह व्रत करती है।
इस व्रत को मां पार्वती ने भी किया था। और इसी दिन उन्हें भोलेनाथ पति के रुप में प्राप्त हुए थे। इस व्रत को जो भी महिला करती है। या जो भी कन्या करती है। उसे अखंड सोभाग्य की प्राप्ति होती है।
हरि तालिका तीज का महत्व क्या है?
यह व्रत करने वाली स्त्रियों और कन्या को सौभाग्य कि प्राप्ति होती हैं। शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने 107 बार जन्म लिया था। लेकिन वह उन्हें पति के रूप में ना पा सकी। जब उन्होंने 108 बार जन्म लिया तो इस व्रत को किया। जिनसे उन्हें शिवजी पति के रूप में प्राप्त हुए, अर्थात जो भी कन्या इस व्रत को करेगी। उसे अपने अनुरुप पति प्राप्त होगा। और महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होगी। तथा उन पर माँ पार्वती और भोलेनाथ की कृपा बनी रहेगी।
हरि तालिका तीज की कथा क्या है?
हरि तालिका तीज की कथा इस प्रकार से है। मां पार्वती ने हिमालय राज के यहा जन्म लिया और वह भोलेनाथ को पति के रूप में पाना चाहती थी। लेकिन नारद मुनि उनके लिए भगवान विष्णु का रिश्ता लेकर आते हैं। यह बात हिमालय राज माँ पार्वती को बताते हैं। यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी होती हैं और रोती हैं।
तो उनकी सखी यह देख कर उनसे पूछती है। क्या हुआ तुम क्यों रो रही हो तब वह बताती हैं। कि वह तो भोलेनाथ को पति के रूप में पाना चाहती हैं। पर उनके पिता हिमालय राज उनका विवाह भगवान विष्णु के साथ करना चाहते हैं।
इसलिए वह बहुत दुखी है, उनकी सखी उन्हें जंगल में जाने का उपाय बताती है। तब माँ पार्वती जंगल में जाकर भाद्र पद की शुक्ल पक्ष की तृतीया को एक शिवलिंग बनाकर उसकी कठोर तपस्या करती हैं।
बिना कुछ खाए बिना कुछ किए तपस्या करती रहती है। जिससे भगवान भोलेनाथ उन पर प्रसन्न हो जाते हैं। और मां पार्वती भोलेनाथ को पति के रुप में प्राप्त करती है।
पूजा का सामान
गंगाजल, पंचामृत, हल्दी, कुमकुम, चावल, मेहंदी, सिंदूर, मोली, केसर, चंदन, कांच कंघा, काजल, बिंदी, कांच की चूड़ी, बिछिया, कपास का वस्त्र, कच्चा सूत, जनेऊ, 1 थाली या 1 छीतरी, बारीक रेत, 4 केले के खंभे, आम के पत्ते, 16 प्रकार के पुष्प, पुष्पहार, दूर्वा, 16 प्रकार के झाड़ के 16-16 या 5-5 पत्ते, दीपक, बत्ती, घी, माचिस, अगरबत्ती, कपूर, चौरंग चौकी, 16 मिठाई, गिला नारियल (पानी वाला नारियल), केला, खजूर, बादाम, खारक, गुड़, शक्कर, पान, सुपारी, रुपया।
नीचे 16 प्रकार के वृक्ष का नाम दिया गया है। इन्हीं 16 प्रकार के वृक्ष के पत्ते और उनके फूल के साथ चढ़ाना है।
वृक्षों के नाम
कृष्ण कमल, लाल गुलाब, मधुमालती, रातरानी, केना, कदम्ब, गुलाब, मोगरा, रजनीगंधा, सेवंती, कुंद, गेंदा, मोलसरी, सुगंधराज, केतकी, चम्पा, जूही, पारिजात, शिवलिंगी, कनेर, चमेली, जासवान, बकुल, कांटी कोरन्टी, चकरी, कटेल चम्पा तिरंडी, धतूरे का फूल, रुई का फूल, घन्टे का फूल।
यहां पर आने को प्रकार के वृक्षों के नाम दिए गए हैं, जिसमें से आप अपने सुलभता अनुसार 16 वृक्ष के पत्ते और फूल ले सकते हैं।
सुहाग पिटारी की चीजें
मंगलसूत्र, अंगूठी, सोने या कांच की चूड़ी, पायल, बिछिया, कांच, कंघा, तेल, बिंदी, मोली, मेहंदी, सिंदूर, हल्दी, ब्लाउज पीस, बांस की टोकरी।
हरि तालिका तीज की पूजा विधि क्या है?
• प्रातः काल या सायंकाल में स्नान करके नए वस्त्र धारण करके पूजा करना।
• पूजा की जगह तोरण बांधना, सुंदर वस्त्र और केले के खंभे लगाकर पूजा स्थल को सुशोभित करना और रंगोली बनाना।
• मूर्ति स्थापित करने के लिए थाली या छीतरी पर छोटा वस्त्र बिछाकर कच्चे सूत में हल्दी कुमकुम लगाकर चारों ओर लपेटना।
• गीली रेत से शिवपिंड बनाकर थाली पर स्थापित करके पूजा करना या बाजार से शिव पार्वती और सखी की मूर्ति लाकर विधिपूर्वक पूजा करना।
• पूजा करके आरती करके मनोभाव से प्रार्थना करना, और कथा सुनाना।
• कथा सुनने के बाद सुहागन स्त्रियों को यथाशक्ति दान देना।
• 13 मिठाई पर रुपया रखकर कलपना निकाल कर सासूजी को देखकर प्रणाम करना।
• रात्रि में जागरण करना, शिव मंत्र का जाप करना, भजन, कीर्तन करना या रात में 12:00 बजे तक जागरण करना, 12:00 बजे आरती करना। कुछ लोग रात में 12:00 बजे आरती करके पारणा करते हैं।
• कई लोग सुबह पूजा विसर्जन करके पारणा करते हैं। अगर रात में पारणा करते हैं तो पानी, दूध और फलीहार लेना चाहिए अन्न नहीं लेना चाहिए। पारणा करने से पहले घी में थोड़ा सा सोंठ का पाउडर और शक्कर मिलाकर लेना चाहिए, जिससे गले को राहत मिलेगा।
नोट – अगर त्रिकाल पूजा करना है, तो एक पूजा रात में 12:00 बजे करना, दूसरी पूजा रात में 3:00 बजे करना और तीसरी पूजा प्रातः काल 6:00 बजे करना और साथ में त्रिकाल स्नान करना चाहिए।
विसर्जन
दूसरे दिन प्रात:काल दहीभात, भिजी हुऐ चने की दाल और काकड़ी का भोग लगाकर, उत्तर पूजा करना, आरती करना, शिव पार्वती का विसर्जन गंगाजल के निर्मल जल में, तालाब में या कुएं में करना। विसर्जन करने से पहले आरती करना। पूजा का सामान ब्राह्मण को देना, सुहाग का सामान और मिठाई ब्राह्मणी को देना। एक ब्राह्मण जोड़ा-जोड़ी को भोजन करना करके दक्षिण देना। फिर स्वयं पारणा करना, भोग लगाकर प्रसाद खाकर उपवास छोड़ना चाहिए।
व्रत समाप्त पर किए जाने वाले धार्मिक कार्य
व्रत समाप्त हो जाने पर कुछ धार्मिक कार्य किए जाते हैं जिसमें हवन करना, गोदान करना, सायन दान करना, शामिल है। आप यथाशक्ति शिव जी को धोती गमछा चढ़ाना। पार्वती जी को सुहाग पिटारी चढ़ाना। 16 ब्राह्मण जोड़ा जोड़ी को भोजन करना। अगर आप 16 ब्राह्मण को भोजन नहीं कर सकते हैं तो 8 ब्राह्मण को भोजन करना। ब्राह्मणों को गमछा, स्टील की गिलास में शक्कर भरकर और नारियल रुपया देना। ब्राह्मणों को ब्लाउज पीस, चूड़ी, टीका, मेहंदी, मोली, रुपए देना या 16 सुहाग पिटारी देना।
अगर आप एक साथ 16 सुहाग पिटारी नहीं दे सकते, तो हर वर्ष एक सुहाग पिटारी चढ़कर देना चाहिए। एक बांस की टोकरी में 16 प्रकार के सौभाग्य द्रव्य रखना। एक पिटारी में सोने का गहना देना, बाकी पिटारी में चांदी का गहना दे सकते हैं।
हरितालिका तीज करने का फल
माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति पाप से मुक्त हो जाता है। सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। राजपाट मिलता है। स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है, अखंड सुहाग मिलता है। इस व्रत को करने वाली स्त्री पार्वती के समान सुख पूर्वक पति रमण करके शिवलोक को जाती हैं।
इस तृतीया को बिना अन्न-जल के व्रत को पूरा करना आवश्यक है। भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है कि इस दिन जो स्त्री आहार करती है। वह सात जन्म तक बांझ तथा जन्म-जन्म विधवा होती है। दरिद्रता आती है, पुत्रनाश होते हैं।