हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा एक महान पर्व है। इसको त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा में कृतिका नक्षत्र पर बृहस्पति और चंद्रमा दोनों एक साथ हो तो पदक योग बन जाता है। जोकि बहुत बड़ा शुभ योग माना गया है। त्रिदेव ने इसे महापुनीत पर्व भी कहा है। नक्षत्रों के मिलने से बनने वाले योग को त्रिदेव ने भी शुभाशुभ बताया है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान का मत्स्यावतार अवतार हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानक जी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन गुरु नानक जयंती मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दान, जप, होम, दीप दान आदि करना बहुत ही शुभ धर्म कर्म का कार्य है। जो कि पुण्य देने वाला होता है। इस दिन पवित्र जल में स्नान करने का बहुत बड़ा महत्व है। अलग-अलग जगहों पर स्नान के मेले लगते हैं। जोकि ज्यादा संख्या में गंगा नदी पर देखने को मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर तीर्थ में स्नान करना और कपिला गाय का दान करना सर्वोत्तम माना गया है। तो वहीं रात्रि में व्रत करने के बाद वृषदान देने से शिवलोक में स्थान मिलता है।
गोदान के अलावा कन्यादान का भी विशेष महत्व बताया गया है। अगर स्वयं की कन्या ना हो, तो किसी आस-पड़ोस की या ब्राम्हण की कन्या को भी वस्त्र आभूषण से सुशोभित करके कन्यादान करना पुण्य दिलाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन कार्तिक मास समाप्त हो जाता है। इसलिए कार्तिक स्नान, व्रत, कथा, कहानी, भजन आदि की समाप्ति कर दिया जाता है। कार्तिक व्रत को करने वाला व्यक्ति व्रत के उद्यापन में रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।
अतः प्रातः काल गंगा स्नान करने के बाद भगवान की पूजा करते हैं। भगवान को पंचामृत से स्नान कराकर दीप जलाकर कथा सुनते हैं। कथा समाप्त होने के बाद हवन करा कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दक्षिणा, गोदान, शैय्यादान, अन्नदान, वस्त्रदान, पात्रदान, दीपदान आदि किया दिया है।