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ससुराल और मायके का दर्द की कहानी - sad story in hindi

ससुराल में वह पहली सुबह मुझे आज भी याद है। कितनी घबराकर मैं उठी थी। यह सोचती हुई कि कहीं देर ना हो जाए। सब न जाने मेरे बारे में क्या सोचेंगे।

केवल एक रात ही तो नये घर में कटी थी। और इतना सब कुछ बदल गया। जैसे आसमान में उड़ती चिड़िया को किसी ने मोती के लालच देकर पिंजरे में कैद कर लिया हो।

शुरू के कुछ दिन तो यूं ही गुजर गए। एक दिन हम बाहर घूमने गए। जब हम वापस घर आए, तो सासु मां की आंखों में खुशी तो दिख रही थी, लेकिन केवल अपनी बेटे के लिए ही।

मैने सोचा कि शायद नया नया रिश्ता है, एक दूसरे को समझने में कुछ वक्त लगेगा। लेकिन समय ने जल्द ही एहसास करा दिया, कि मैं यहां बहू हूं। इसलिए मैं जैसा चाहूं वैसा नहीं कर पाऊंगी। कुछ कायदा और मर्यादा है, जिसका मुझे पालन करना होगा। जैसे कि धीरे-धीरे बात करना, धीरे से हंसना, सब के खाने के बाद खाना खाना, यह सब आदतें मुझे अपने आप आ गई।

मां से भी बात कम होने लगी। जिसकी वजह से मुझे पीहर की याद आने लगी। ससुराल में पूछेने पर कहा गया, कि अभी नहीं कुछ दिन के बाद जाना।

जिस पति ने शादी के समय कहा था, कि आपकी बेटी पास में ही तो है, कभी भी आ जाया करेगी। उसके भी सुर बदल गए।

अब मुझे धीरे-धीरे यह समझ में आ गया था, कि शादी कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसमें केवल घर नहीं बदलता, पूरी जिंदगी बदल जाती है।

अब मैं कभी भी उठकर अपने पीहर नहीं जा सकती। यहां तक की पीहर वालों को भी मुझसे मिलने के लिए पूछ कर आना पड़ता है।

पीहर में जोर-जोर का हंसना, कभी भी कहीं भी चला जाना, रसोई में से कुछ भी उठा कर खा लेना, अपनी मर्जी का करना, यह सब यादें बनकर रह गई।

अब मुझे समझ में आने लगा था, कि क्यों विदाई के वक्त सभी लोग मुझे गले लगा कर रो रहे थे। असल में मुझसे दूर होने का एहसास उन्हें हो रहा था। लेकिन एक और बात थी, जो उन्हें अंदर ही अंदर परेशान कर रही थी। कि अब जिस सच्चाई से मुझे इतने दिन दूर रखा गया है। वह सच्चाई मेरे सामने आने वाली थी।

पापा का यह झूठ की मै उनकी बेटी नहीं बेटा हूं। अब और दिन नहीं छूप पायेगा, जो कि उनकी सबसे बड़ी चिंता थी, कि अब उनका बेटा जिसको कभी भी बेटी होने का एहसास नहीं कराया था। जीवन के इतने बड़े सच से सामना करने जा रही थी।

वही मां को भी चिंता सता रही थी, कि उनकी बेटी अभी तक कोई एक काम भी नहीं किया करती थी। अब वह पूरे परिवार की जिम्मेदारी कैसे उठाएगी।

सभी लोग मेरे इस विदाई और पराए होने का दर्द जान रहे थे। सिवाय मेरे, इसीलिए वह सभी लोग रो रहे थे।

आज मुझे समझ आ गया कि उनका रोना गलत नहीं था। यह हमारे समाज का नियम ही है। कि एक बार बेटी डोली में विदा हो गई, तो वह उस घर के लिए केवल मेहमान ही बन कर रह जाती है।

फिर कोई चाहे कितना क्यों ना कह ले, कि यह घर आज भी उसी का है। सच तो यह है, कि अब वह कभी भी यूं ही अपनी पीहर नहीं जा सकती।

चाहे कितना भी समस्या और परेशानी क्यों ना आ जाए मुझे ही हल करना है हंसते हुए या गम छुपाते हुए।

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यह article केवल जानकारी purpose के लिए बनाया गया है। इसलिए किसी भी चीज का इस्तेमाल करने से पहले विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें। यह आपकी जिम्मेदारी है।

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