ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा की एक कला को तिथि माना जाता है। तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ किया जाता है। अमावस्या के बाद की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा की तिथि को शुक्ल पक्ष की तिथि तथा पूर्णिमा के बाद की प्रतिपदा से आरंभ करके अमावस्या तक की तिथि को कृष्ण पक्ष की कहते है।
इसलिए एक माह में 2 पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। दोनों पक्ष की पूर्णिमा और अमावस्या के अतिरिक्त अन्य अतिथियों के नाम एक जैसे होता हैं।
जैसे – प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी। चतुर्दशी के बाद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पूर्णिमा तथा कृष्ण पक्ष की तीसवीं तिथि को अमावस्या कहते हैं।
तिथि को 1, 2, 3 आदि अंकों में लिखा जाता है। जो की पूर्णिमा तक यह क्रम 15 अंक की संख्या तक चलता है। लेकिन उसके बाद पुनः 1, 2, 3 आदि लिखा जाता है। और जिस दिन अमावस्या होता है। उस दिन की तिथि को 30 के अंक के रूप में लिखा जाता है।
तिथियों के अंक | शुक्ल पक्ष | तिथियों के अंक | कृष्ण पक्ष |
---|---|---|---|
1 | प्रतिपदा | 1 | प्रतिपदा |
2 | द्वितीया | 2 | द्वितीया |
3 | तृतीया | 3 | तृतीया |
4 | चतुर्थी | 4 | चतुर्थी |
5 | पंचमी | 5 | पंचमी |
6 | षष्ठी | 6 | षष्ठी |
7 | सप्तमी | 7 | सप्तमी |
8 | अष्टमी | 8 | अष्टमी |
9 | नवमी | 9 | नवमी |
10 | दशमी | 10 | दशमी |
11 | एकादशी | 11 | एकादशी |
12 | द्वादशी | 12 | द्वादशी |
13 | त्रयोदशी | 13 | त्रयोदशी |
14 | चतुर्दशी | 14 | चतुर्दशी |
15 | पूर्णिमा | 30 | अमावस्या |