कुंडली सीखने के लिए नक्षत्रों का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। जिसको आपने पिछले अध्याय में पढ़ा। अब हम इस अध्याय में नक्षत्रों के स्वामी के बारे में पढेगे, और आने वाले अगले अध्याय में हम नक्षत्रों के चरणाक्षर के बारे में भी पढेगे।
जैसा कि आपने पिछले तीसरे अध्याय में तिथियों के स्वामी के बारे में ज्ञान अर्जित किया। उसी प्रकार नक्षत्रों की भी स्वामी होते हैं। जिससे उनके स्वभाव के बारे में पता लगाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है, कि जिस प्रकार नक्षत्र के स्वामी का गुण – स्वभाव होगा। उसी प्रकार उस नक्षत्र का भी गुण – स्वभाव होगा।
ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिए गए सारणी को देखें।
नक्षत्र | स्वामी |
---|---|
अश्विनी | अश्विनी कुमार |
भरणी | काल |
कृत्तिका | अग्नि |
रोहणी | ब्रह्मा |
मृगशिरा | चंद्र |
आर्द्रा | रूद्र |
पुनर्वसु | अदिति |
पुष्प | बृहस्पति |
अश्लेषा | सर्प |
मघा | पितर |
पूर्वाफाल्गुनी | भग |
उत्तराफाल्गुनी | अर्यमा |
हस्त | सूर्य |
चित्रा | विश्वकर्मा |
स्वाति | पवन |
विशाखा | शुक्राग्नि |
अनुराधा | मित्र |
ज्येष्ठा | इंद्र |
मूल | निर्ऋति |
पूर्वाषाढ़ा | जल |
उत्तराषाढ़ा | विश्वेदेव |
अभिजीत | ब्रह्मा |
श्रवण | विष्णु |
धनिष्ठा | वसु |
शतभिषा | वरुण |
पूर्वाभाद्रपद | अजैकपाद |
उत्तराभाद्रपद | अहिर्बुधन्य |
रेवती | पूषा |