प्रत्येक मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए कर्म एवं ज्ञान दोनों की आवश्यकता होता है। क्योंकि देखा जाए तो, कर्म, ज्ञान के साथ भक्ति की भी आवश्यकता होता है। लेकिन ज्ञान या भक्ति करने के लिए भी कर्म ही करना पड़ता है। बिना कर्म किए ज्ञान या भक्ति सिद्ध नहीं होता है।
इसलिए आज हम यहां पर भक्ति करने के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। पूजा पाठ से संबंधित जो भी जानकारी आपको चाहिए, उसके बारे में यहां पर दिया गया है। यह जानकारी आपके लिए अवश्य बहुमूल्य होगा। क्योंकि हमने पूरा जानकारी देने का प्रयास किया हुआ है।
पूजा पाठ से संबंधित जानकारी और नियम
सबसे पहले संकल्प, संध्या करने की महिमा, पवित्रीकरण, आचमन, प्राणायाम, गायत्री मंत्र का महिमा आदि के बारे में जानेंगे। उसके बाद अन्य जानकारी प्राप्त करेंगे।
संकल्प की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
प्राचीन काल से ही व्रत, मंत्र जप, पूजा-पाठ, दान, ब्राह्मण भोजन, श्री गणेश पूजन, नवग्रह, लक्ष्मी पूजन, जन्मदिन पूजन, जातकर्म, नामकरण, चूड़ाकर्म, विवाह संस्कार आदि। अनेक ऐसे संस्कारों में संकल्प लेने की आवश्यकता पड़ता है। क्योंकि बिना संकल्प लिए पूजा-पाठ, व्रत, हवन आदि अनुष्ठान का फल प्राप्त नहीं होता है।
संध्या करने की महिमा
शास्त्रों में बताया गया है, कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि अगर संध्या ना करें, तो वह अपवित्र हो रहते हैं। तथा उन्हें किसी भी पुण्य कर्म की फल प्राप्त नहीं होते हैं।
इसलिए संध्या का ज्ञान होना आवश्यक है। क्योंकि जिसने संध्या का ज्ञान प्राप्त नहीं किया और संध्या की उपासना नहीं किया। तो वह ब्राम्हण जीवित रहते हुए भी शूद्र के समान होता है। और वह मृत्यु के बाद अधम योनि को प्राप्त करता है।
इसलिए ब्राम्हण को संध्या का ज्ञान और संध्या की उपासना अवश्य करना चाहिए। क्योंकि ब्राह्मणों के ऊपर अन्य लोगों के शुभाशुभ कर्मों का भार भी वहन करना पड़ता है।
पवित्रीकरण
ब्राम्हण को पवित्रीकरण करना भी आवश्यक होता है। स्नान आदि करने के बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके कुशा या कंबल के आसन पर बैठकर, दोनों हाथ की अनामिका उंगली में कुशा से निर्मित पवित्री धारण करके, पात्र में रखे हुए गंगाजल में गंधक अक्षत डालकर कुशा से निर्मित मोटक के द्वारा शरीर पर तीन बार छिड़कना चाहिए।
मंन्त्र –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्यऽरीकांक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आचमन (जल ग्रहण करना)
आचमन करना भी आवश्यक है, क्योंकि आचमन करने से मानसिक शुद्धि प्राप्त होता है। आचमन करने के लिए दाहिने हाथ की हथेली को गोकर्ण जैसी मुद्रा बनाएं, और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तीन बार आचमन करें। आचमन करते समय साधक पूर्व या उत्तर मुखी होकर दोनों हाथ को जानुअ के भीतर कर के दाहिने हाथ वाले ब्रह्मातीर्थ से आचमन करें।
मंन्त्र –
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः
प्राणायाम
शास्त्रों में प्राणायाम करने के लिए भी कहा गया है। क्योंकि प्रणाम करने से शरीर के आंतरिक पाप सब खत्म हो जाते हैं। इसलिए प्राणायाम अवश्य करना चाहिए।
प्राणायाम करने से पूर्व इस मंत्र का पाठ करना चाहिए।
मंन्त्र – ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः, ॐ महः ॐ जनः, ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्।
अगर किसी कारण इस मंत्र का जप ना कर पाए, तो आप 3 बार गायत्री मंत्र का जप करके फिर प्राणायाम करें। प्राणायाम के तीन भेद होते हैं।
1. पूरक, 2. कुंभक, 3. रेचक
(1) दाहिने हाथ के अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र से श्वास को धीरे-धीरे खींचने को पूरक प्राणायाम कहते हैं। इस प्राणायाम को करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
(2) जब सांस खींचना रुक जाए, तब अनामिका या कनिष्ठा उंगली से नाक के बाएं छिद्र को दबा दें। मंत्र जपते रहें। यह कुंभक प्राणायाम कहा जाता है। इस प्राणायाम को करते समय ब्रह्मा जी का ध्यान करना चाहिए।
(3) अंगूठे को नाक के दाहिने छिद्र से श्वास को धीरे धीरे छोड़ें। इस प्राणायाम को रेचक प्राणायाम कहा जाता है। इस प्राणायाम को करते समय शंकर जी का ध्यान करना चाहिए।
गायत्री मंत्र की महिमा
जब भी कोई जप, अनुष्ठान, व्रत आदि का प्रारंभ किया जाता है। तो उस समय गायत्री मंत्र जप का विशेष महिमा माना गया है। गायत्री मंत्र में परमात्मा का स्तवन है। जिससे गायत्री मंत्र के जप से बारम्बार परमेश्वर की स्तुति संपन्न होता है।
माना जाता है कि, अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन 7 बार गायत्री मंत्र का जप करता है। तो उसका शरीर पवित्र होता है। 10 बार जप करने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होता है। 20 बार जप करने से शिवलोक प्राप्त होता है। 108 बार जप करने से पिछले जन्म का पाप नष्ट हो जाता है। और 1000 बार जप करने से 3 जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।
पूजा पाठ का अर्थ
पूजा पाठ का अर्थ देखा जाए तो। यह मन को पवित्र करने वाला होता है। क्योंकि पूजा पाठ करने से मन को शांति मिलता है। मन शांत और पवित्र हो जाता है। अगर मन शांत और कभी तरह रहेगा तो, वह आने वाले जीवन में सफलता दिलाएगा। क्योंकि उच्च विचार ही सफलता दिलाते हैं। इसलिए पूजा पाठ को मन की शांति के लिए और मन को पवित्र करने के लिए करना बेहतर साबित होगा।
रोज पूजा करने से क्या होता है
साधारण तौर पर देखा जाए, तो घर में रोजाना पूजा पाठ करना चाहिए। क्योंकि घर में रोजाना पूजा पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जिससे घर में रहने वाले व्यक्ति उच्च विचार रखते हैं। क्योंकि जहां पर नकारात्मक ऊर्जा रहता है, वहां पर बुराइयां घेरे रहते हैं।
इसलिए पति देव घर में सुबह शाम धूप, अगरबत्ती, दीया आदि जलाना घर के वातावरण को सुगंधित बनाते हैं। जिससे घर में रहने वाले व्यक्ति को ताजगी महसूस होता है। जिससे मन भी शांत और प्रसन्न रहता है।
रोज की पूजा कैसे करें
अगर प्रतिदिन की पूजा करने की विधि को जानने बैठे, तो अनेकों विधियां मिलेंगी। जो कि आज के इस व्यस्त जीवन में संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए आज के इस दौर में मन को शांत और प्रसन्न रखने के लिए जो लोग पूजा करना चाहते हैं। उनको अपने समय अनुसार और सुविधा के अनुसार पूजा करना उचित रहेगा।
क्योंकि अगर आप 1 मिनट पूजा करके जितना प्रसन्न हो जाते हैं। और अपने व्यस्त जीवन जीते हैं। उतना अगर आप एक घंटा पूजा करके प्रसन्न रहने की कोशिश करेंगे। तो संभव है, कि आप प्रसन्न नहीं रह पाएंगे। क्योंकि 1 घंटे की पूजा करने में ना तो आपका मन लगेगा, ना ही आप उसे करके अपने आप को प्रसन्न महसूस कर पाएंगे।
इसलिए जो व्यक्ति जितना समय तक पूजा करना चाहता है। और जिस तरह से करना चाहता है। जिससे उसके मन को शांति मिले, तो वह वैसे कर सकता है। क्योंकि भगवान कभी किसी के ऊपर दबाव नहीं डालते हैं। कि आप ऐसा ही करें।
क्योंकि मैं मानता हूं, कि अगर आप जो कार्य करने में अपने आप को प्रसन्न महसूस करते हैं। वह काम आपके लिए बेहतर है। क्योंकि दबाव में किया गया कार्य ना तो आपके मन को प्रसन्न करिएगा, ना ही आपको सुख प्रदान करने वाला है।
पूजा पाठ करने का सामान
दैनिक पूजा करने के लिए पूजा का सामान कई सारे होते हैं। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है, कि आप किस ईश्वर का पूजा करते हैं। क्योंकि सभी समान सभी ईश्वर के लिए नहीं होता है। इसलिए यहां पर मैं आपको साधारण तौर पर पूजा करने के सामान के बारे में बता रहा हूं।
क्योंकि मुझे यह एहसास है, कि अगर मैं पूरा विधि बताने लगा तो। आप लोगों में से कुछ लोग नहीं कर पाएंगे। क्योंकि ऐसे कई सारे भाई बंधु और माताएं हैं। जो अपना जीवन यापन करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कार्य करते हैं। जिससे उनके पास वक्त बहुत कम मिलता है। और उसी कम वक्त में उन्हें ईश्वर की पूजा के साथ-साथ अपना दैनिक क्रिया भी करना होता है।
इसलिए वह केवल ईश्वर के सामने धूप, दीप जलाकर ईश्वर को प्रणाम कर लेते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। क्योंकि पूजा अगर एक क्षण के लिए भी श्रद्धा भक्ति से किया जाए। वही ईश्वर के लिए काफी होता है। ना कि कई घंटों तक अपने आप को तकलीफ देकर किया जाए।
इसलिए आप साधारण तौर पर ईश्वर को फूल अर्पित करें।, धूप-दीप दिखाएं, अगर संभव हो तो घर में कलश की स्थापना करके रखें, भगवान को भोग लगाकर प्रार्थना करें। यह साधारण तौर पर दैनिक पूजा का सामान है।
पूजा पाठ करने वाले दु:खी क्यों होते हैं
ज्यादा पूजा पाठ करने वाला व्यक्ति ही सबसे ज्यादा दुखी क्यों है। इसका उत्तर तो मैं नहीं जानता। लेकिन मेरा मानना है, कि ज्यादा पूजा पाठ करने वाला व्यक्ति अपने दुखों का कारण स्वयं होता है। क्योंकि बिना कर्म किए किए ही फल प्राप्ति की इच्छा रखने लगता है, जो कि कभी मिलने वाला नहीं है। क्योंकि बिना कर्म किए फल प्राप्त नहीं होता है।
इसलिए वह व्यक्ति कर्म तो करता नहीं है लेकिन भगवान की भक्ति में लीन रहने की बात करता है और कहता है कि मैं भगवान कहां बहुत बड़ा भक्त हूं लेकिन असल में वह भक्त नहीं लोभी होता है जो भक्ति की आड़ में अपने स्वार्थ को पूरा करने की लालसा रखें हुए रहता है
इसलिए वह व्यक्ति कर्म करने से भागता है। और बिना कर्म किए हुए, फल प्राप्त हो जाए ऐसा हो नहीं सकता।
नोट – ऊपर दिया गया जानकारी केवल मेरा मत है। यह आवश्यक नहीं है, कि इसे किसी धर्म ग्रंथ या ज्योतिषी किताबों में मिलें। क्योंकि मैं केवल अपना विचार आप लोगों के सामने रखा हूं। क्योंकि मैं धर्म और ईश्वर पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति हूं। इसलिए यह आवश्यक नहीं है, कि जो मैं कहा वही आपको मानना है। आप अपने मतानुसार कार्य करें। वही आपके लिए उत्तम रहेगा।