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प्रदोष व्रत कब करते है, प्रदोष काल किसे कहते है, प्रदोष व्रत की पूजा कब करनी चाहिए?

आज हम प्रदोष व्रत के बारे में जानेंगे। कि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त कब है?, प्रदोष व्रत का महत्व क्या है?, दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व क्या-क्या है?, प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या है? जिससे प्रदोष व्रत को सही विधि से किया जा सके।

प्रत्येक पक्ष (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) के त्रयोदशी को प्रदोष व्रत करते हैं। जोकि सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद अर्थात सायं काल का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में भोलेनाथ की पूजा की जाती है। और इस दिन व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है।

परंतु अगर यह संभव ना हो तो तो फल खा सकते हैं। पर अन्न न खाएं। इस दिन के बारे में यह भी मान्यता है। कि इस समय भोलेनाथ कैलाश पर्वत के रजत भवन में नित्य करते हैं। और देवता उनकी स्तुति करते हैं। इस दिन व्रती शिव और पार्वतीजी का ध्यान करके प्रदोष काल के समय घी का दीपक जलाएं, तो उनके सारे दुखों का निवारण हो जाता है। और प्रदोष व्रत करने से सभी दोषो से मुक्ति मिल जाती हैं।

प्रदोष व्रत कब करते है?

प्रदोष व्रत प्रत्येक पक्ष (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) के त्रयोदशी को करते हैं। इस व्रत में सुबह तो पूजा करते ही है। परंतु सांय काल के समय अर्थात सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद के समय विधि पूर्वक पूजा की जाती है। क्योकी प्रदोष व्रत की पूजा हम प्रदोष काल में ही करते हैं। 

प्रदोष काल किसे कहते है?

प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट के बाद का समय होता है। वैसे तो रोज ही प्रदोष काल होता है। पर प्रदोष व्रत हम कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी को ही करते हैं।

प्रदोष व्रत की पूजा कब करनी चाहिए?

प्रदोष व्रत का पूजा प्रदोष काल में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल किसे कहते हैं? जब शाम सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक के समय को प्रदोष काल कहलाता है। इस समय में पूजा किया जाएगा।

प्रदोष व्रत का महत्व क्या है?

इस व्रत के महत्व के बारे में सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को गंगा के तट पर सुनाया था। सूत जी ने कहा की जब कलयुग में मनुष्य धर्म का पथ छोड़कर अधर्म के पथ पर चलेगा। तब उस समय यह एक ऐसा व्रत होगा, जो मनुष्य को शिव जी की कृपा का पात्र बनाएगा। और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति कराएगा। 

सूत जी ने यह भी कहा कि यह एक ऐसा व्रत है। जो मनुष्य के कष्ट और पाप नष्ट करेगा। और यह उनके लिए बहुत ही कल्याणकारी होगा। इस व्रत के महत्व के बारे में सबसे पहले शंकर जी ने माता सती को सुनाया था। और फिर महर्षि वेदव्यास जी ने सूत जी को सुनाया था। तथा सूत जी ने शौनकादि ॠषियो को बताया।

दिन के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व क्या-क्या है?

वेदों के ज्ञाता सूत जी ने सप्ताह के अलग-अलग दिनों में प्रदोष व्रत से क्या-क्या लाभ मिलता है। इसके बारे में भी बताया है।
रविवार – रविवार के दिन प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे रवी प्रदोष व्रत या सूर्य प्रदोष व्रत कहते हैं। रविवार के दिन प्रदोष व्रत करने से मनुष्य निरोगी और स्वस्थ रहता है।
सोमवार – सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
मंगलवार – मंगलवार को प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं।  मंगलवार को प्रदोष व्रत करने से मनुष्य हमेशा स्वस्थ रहता है।
बुधवार – बुधवार को प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहते हैं। बुधवार को प्रदोष व्रत करने से उसके द्वारा किए गए कार्य की सिद्धि होते हैं।
बृहस्पतिवार – बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहते हैं। बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है।
शुक्रवार – शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शनिवार – शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पडने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से पुत्र प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि

• प्रदोष व्रत के दिन प्रातः उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े धारण करें। और धूप दीप प्रज्वलित करें।
• शाम को प्रदोष काल के समय पुनः स्नान करके पूजा आरंभ करें।
• भगवान शिव शंकर का गंगाजल से अभिषेक करें। और पुष्प बेलपत्र अक्षत धूप दक्षिणा और नैवेद्य अर्पित करें।
• इस दिन भोलेनाथ को चावल की खीर का भोग लगाएं।
• सुहागन स्त्रियां मां पार्वती को श्रृंगार अर्पित करें। उन्हें चुनरी अर्पित करें।
• शिव जी के भजन और शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं। इसके पश्चात शिव शंकर और माता पार्वती की आरती करें। पूजन पूर्ण होने के बाद फलाहार करें।

इस तरह आप प्रदोष व्रत का पूजा कर सकते हैं। जिससे आपके ऊपर भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद बनेगा। और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी।

प्रदोष व्रत कथा

प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।

एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।

एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिवजी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।

एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा।

राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।

अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?

राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।

उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।

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