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व्रत क्यों किया जाता है? | व्रत के कितने प्रकार होते हैं? | व्रत करने के बारे में संपूर्ण जानकारी

आज हम व्रत के बारे में विस्तार से जानेंगे कि व्रत क्यों किया जाता है। व्रत करने से क्या लाभ होने वाला है। क्यों ऋषि-मुनियों ने व्रत की परंपरा को बनाया। इसका क्या अर्थ होगा। और व्रत ना करने से क्या हो सकता है। व्रत के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप पूरा पोस्ट को पढ़ें। इसमें आपको व्रत करने से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त हो जाएंगे। जिसके बारे में आप जानना चाहते हैं।

व्रत क्यों किया जाता है?

भारतवर्ष में ऋषि-मुनियों ने व्रत की परंपरा प्रारंभ की, यह व्रत करने की परंपरा तभी से चला आ रहा है। जोकि भारत के ग्रीष्म, वर्षा और शीत ऋतु के अनुरूप बनाया गया है। जिसको हम आज भी करते हैं।

व्रत करने से मन की शुद्धि, वातावरण की पवित्रता और उच्च विचारों से दूसरे को प्रभावित करने के लिए व्रत को किया जाता है। अर्थात भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया जाता है। अगर देखा जाए तो अपने शुद्ध विचारों को और शुद्ध करने के लिए उपवास से बढ़कर कोई और दूसरा चीज नहीं है।

इसलिए उपवास किए जाते हैं। यह उपवास दो प्रकार के होते हैं। (1) काम्य (2) नित्य

काम्य व्रत – काम्य व्रत वह व्रत होता है, जो किसी कामना से किया जाता है। जिसको साधारण भाषा में “मनौती मानना” भी कहा जाता है।

नित्य व्रत – नित्य व्रत वह व्रत होता है, जिसमें कोई कामना नहीं होता है। इसमें केवल भक्ति और प्रेम रहता है। जिसको निस्वार्थ भाव से किया जाता है।

नित्य व्रत को ही सबसे उत्तम व्रत माना गया है। इस व्रत को करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो व्रत करने का अर्थ उपवास ही नहीं है। व्रत करने का अर्थ ईश्वर का ध्यान और मनन करना होता है। इससे ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं।

इसलिए प्रत्येक गृहस्थ जिंदगी बिताने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आराध्य देव की पूजा, अर्चना, ध्यान और चिंतन करता रहे। अगर देखा जाए, तो यह हमारे धर्म का परम कर्तव्य भी है।

व्रत के कितने प्रकार होते हैं?

हमने पहले बताया कि उपवास दो प्रकार के होते हैं। (1) काम्य (2) नित्य लेकिन यह केवल एक व्रत का दो पहलू है। जिसको दो नजरों से देखा जाता है। इनके अंदर भी कई प्रकार के व्रत होते हैं। जिसके बारे में हम आपको अब बताने जा रहे हैं।

प्रजापत्य व्रत – यह व्रत ऐसा व्रत होता है। जिसमें 1 दिन और रात अर्थात 24 घंटे का उपवास किया जाता है।

एकांतर (एकोत्रा) व्रत – इस व्रत में 1 दिन भोजन किया जाता है। तो दूसरे दिन उपवास किया जाता है। इस तरह इसमें 1 दिन का अंतर होता है।

अयाचित व्रत – इस व्रत में बिना किसी व्यक्ति से भोजन मांगे अगर भोजन प्राप्त हो जाए। तो उसे भोजन को ग्रहण किया जाता है।

निगोट व्रत – इस व्रत में निराहार रह जाता है।

निर्जल व्रत – इस व्रत में बिना अन्न और जल के व्रत किया जाता है।

एक भक्त व्रत – इस व्रत में दोपहर के समय एक बार भोजन किया जाता है। अर्थात पूरे दिन में केवल एक बार ही भोजन करना एक भक्त व्रत कहलाता है।

एकासना व्रत – इस व्रत में भी केवल दोपहर के समय भोजन किया जाता है।

नक्त व्रत – इस व्रत में संध्या काल के समय दीपक जलने के बाद रात्रि होने से पहले भोजन किया जाता है।

तो यह आठ प्रकार के व्रत होते हैं। जिनके बारे में आपको बताया गया। अब आपको व्रत के अलग-अलग प्रकारों के बारे में ज्ञात हो गया होगा। अब हम आगे बढ़ते हैं। व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए? इसके बारे में चर्चा करेंगे।

व्रत में क्या खाना चाहिए?

जैसा कि ऊपर व्रत के प्रकारों के बारे में बतलाया गया है। अब हम इन्हीं प्रकारों के अनुसार व्रत में क्या खाना चाहिए? इसके बारे में बताने जा रहे हैं।

व्रत में खाए जाने वाले अन्न जौ, गेहूं, चावल, साबूत मूंग, तिल, खीर, गाय का दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर, शक्कर, सेंधा नमक, नारियल, आम, अमरूद, अनार, सुपारी, काकडी, अदरक आदि अन्न खाए जाते हैं। लेकिन ध्यान रहे इनको तेल में नहीं पकाना है।

अब आप लोग में से कुछ लोग सोचेंगे, कि व्रत में चावल, गेहूं, जौ इत्यादि तो नहीं खाया जाता है। लेकिन हम आपको यह बताना चाहते हैं। कि हमने ऊपर आपको आठ प्रकार के व्रतों के बारे में बताया है। इसलिए प्रत्येक व्रत में अलग अलग तरह का भोजन किया जाता है। इसके अनुसार यहां पर सभी को एक साथ बता दिया गया है।

व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?

अब हम व्रत में क्या क्या नहीं खाना चाहिए? इसके बारे में जानने वाले हैं। यहां भी ऊपर बताए गए सभी व्रतों के अनुसार ही बताया जा रहा है। इसमें भी आप आठ प्रकार के व्रतों के अनुसार ही समझे।

• व्रत के समय उड़द, मधु, राई, मसुर, बासी अन्न, मास, बेर, आंवला, पेठा, काशीफल, प्याज, लहसुन, घीया, बैगन, गाजर, मूली, पालक, बथुआ, तिल का तेल, कीड़ों का खाया हुआ फल, लोहे से कटा हुआ फल, दूसरे की भावनाओं से दूषित फल या अन्य और दूसरों का हिस्सा नहीं खाना चाहिए।
• गृहस्थ जीवन जीने वालों के लिए रविवार को आंवला नहीं खाना चाहिए।
• बताए गए व्रतों में से अन्न खाने वाले व्रतों में केवल एक बार अन्न खाना चाहिए।
• सब व्रत में एक बार सेंधा नमक खाना चाहिए।
• व्रत के समय सायंकाल में भोजन नहीं करना चाहिए।
• व्रत में केवल चंद्रमा के व्रत को छोड़कर रात में भोजन नहीं करना चाहिए।
• व्रत में किसी दूसरे के दिए हुए अन्न को ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने पर जो व्यक्ति अन्न दिया है। उसको फल प्राप्त होगा।

व्रत करने का फल क्या होता है?

अब हम व्रत के फल के बारे में जानेंगे। यहां पर हम व्रत करने से क्या-क्या फल प्राप्त होता है। इसको कई पुराणों के अनुसार जानने वाले हैं।

धर्म सार के अनुसार – व्रत करने से हृदय पवित्र होता है, मानसिक शांति मिलती है, मन में सकारात्मक भाव जागृत होते हैं, मनुष्य को सभी सुख प्राप्त होता है, आत्म बल भी बढ़ता है, इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं, शरीर स्वस्थ रहता है और पुण्य का संचय होता है।

विष्णु पुराण के अनुसार – जो व्यक्ति एकांतर (एकोत्रा) व्रत और नक्त व्रत (इन व्रत बारे में ऊपर बताया गया है) में भोजन करता है। उसे स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है। वही एक भक्त व्रत (इन व्रत बारे में ऊपर बताया गया है) से निर्मल सुख की प्राप्ति होता है।

महाभारत के अनुसार – जैसा कि हमने पहले ही बतला दिया है, कि केवल उपवास करना ही व्रत नहीं है। उसी के अनुसार अब यहां पर महाभारत में दिए गए व्रत के फल को बतला रहे हैं।

• जो व्यक्ति दूध पीकर रहता है। वह स्वर्ग को जाता है।
• वही गुरु की सेवा करने से विद्या और श्राद्ध करने से संतान की प्राप्ति होता है। और मनुष्य अगर तप (आज के इस युग में तप करने का अर्थ तपस्या से नहीं है केवल पुरुषार्थ से है) करें तो धन पाता है।
• जो व्यक्ति मौन व्रत का पालन करता है। वह दूसरों पर हुकुम चलाता है। यहां पर मौन व्रत का अर्थ बिल्कुल मौन रहने से नहीं है। मौन व्रत का अर्थ कम बोलना लिया जाएगा। क्योंकि यह प्राचीन काल की बातें हैं, और आज के इस युग में इसको कर पाना असंभव जैसा होगा। इसलिए यहां पर कम बोलना शब्द सटीक बैठता है।
• जो व्यक्ति दान करता है, उसे उपभोग और जो व्यक्ति ब्रह्माचार्य का पालन करता है। वह दीर्घायु को प्राप्त होता है।
• जो व्यक्ति यज्ञ और व्रत करता है। उसे स्वर्ग प्राप्त होता है।

व्रत के उद्यापन का महत्व क्या है?

अब हम व्रत समाप्ति के बाद किए जाने वाले धार्मिक कार्यों के बारे में जानेंगे। अर्थात व्रत समाप्ति के बाद उसका उद्यापन करने के बारे में जानेंगे।

व्रत करने के बाद उसका उद्यापन अवश्य करवाना चाहिए। क्योंकि उद्यापन करवाने से ही व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। क्योंकि जो व्यक्ति व्रत करने के बाद व्रत के समाप्त होने पर हवन नहीं करवाता है। उसको व्रत का फल प्राप्त नहीं होता है‌। वह व्रत निष्फल हो जाता है। क्योंकि पदम पुराण में यह बात बतलाई गई है।

इस हवन को गाय की भी उसे करना चाहिए। अगर गाय का घी उपलब्ध ना हो तब शुद्ध घी से करना चाहिए। उसके बाद सुवर्ण के साथ दान करना चाहिए। क्योंकि अन्नदान करने से ही वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठान मिलता है।

उद्यापन के समय हवन में बैठने की विधि क्या है?

अब हम उद्यापन के समय हवन में बैठने की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। यह आखरी विधि है। हालांकि अभी भी कई और विधियां हैं। लेकिन अब उनके बारे में यहां पर बताना उचित नहीं होगा। क्योंकि उसको कोई अब करने वाला नहीं है। इसलिए केवल हवन में बैठने की विधि को बता कर इसे समाप्त करते हैं।

• हवन में बैठने के लिए पति पत्नी को जोड़े में होना आवश्यक है।
• हवन के समय पुरुष को धोती और कुर्ता पहनना चाहिए और धोती का पेंशा (आम भाषा में पिछिल्ला भी कहा जाता है) बांधना चाहिए।
• स्त्री को आभूषण और साड़ी पहनना चाहिए। साड़ी अगर चुनडी की हो तो और उत्तम होगा।
• हवन में संपूर्ण परिवार के लोग और इस तरीके पीहर के भी लोग उपस्थित होना चाहिए।
• हवन की पूर्णाहुति होने पर आरती साथ में मिलकर करना चाहिए।
• पीहर के लोग को अपने बेटी और जमाई को वस्त्र देना चाहिए, और प्रणाम करने करते समय हाथ में दक्षिणा देना चाहिए।
• हवन होने के बाद हवन में बैठे स्त्री और पुरुष को अपने बड़ों का आशीर्वाद लेना चाहिए। और उनको दक्षिणा देना चाहिए।
• अगर कोई विधवा स्त्री व्रत करती है। तो वह अपने बेटी और बहू को हवन में बिठा सकती है।
• अगर उस विधवा स्त्री का बेटा और बहू नहीं है। तब उसे अपने पति के फोटो के साथ हवन में बैठना चाहिए।

तो यह था, व्रत करने के बारे में संपूर्ण जानकारी, आशा करते हैं कि, आपको अब व्रत करने के बारे में संपूर्ण ज्ञान हो गया होगा, और इसमें आपको कोई संदेह है नहीं रहेगा।

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